VOL- 7, ISSUE- 1, PUNE RESEARCH WORLD (ISSN 2455-359X) JIF 3.02
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This research paper explores the literary
qualities and talents of the skilled writer Raja Rao, who is quick to present
modern Indian folk sentiments, expressing the living Indian sensibilities in
his fictional realm. This dissertation deals with the artistic cult of Raja
Rao, who has skilfully applied his physical knowledge and esoteric insights to
the interpretation of the realities of life in his art. Among the Indian
writers in English, Raja Rao is one of the most Indian writers who has
unmistakably nurtured a passionate image of India, including its symbols,
cultural ideology, traditions, and code of conduct. Fiction In this way, the
dissertation discusses the fact that Raja Rao's fictional world is full of
Indianness and has become the true voice of Indian sensibility.
Key words: Metaphysical, mystical, realities, symbols, ideologies, ethics,
Indianness, Indian sensibility, authentic, voice.
VOL- 7, ISSUE- 1, PUNE RESEARCH WORLD (ISSN 2455-359X) JIF 3.02
Rural Road connectivity is a key component of
rural development, since it promotes access to economic and social services,
thereby generating increased agricultural productivity, non-agriculture
employment as well as non-agricultural productivity, which in turn expands
rural growth opportunities and real income through which poverty can be
reduced. A study (Fan et al. 1999) carried out by the International Food Policy
Research Institute on linkages between government expenditure and poverty in
rural India has revealed that an investment of Rs 1 crore in roads lifts 1650
poor persons above the poverty line. Public investment on roads impacts rural
poverty through its effect on improved agricultural productivity, higher
non-farm employment opportunities and increased rural wages.
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महाभारत युद्धात विलक्षण युद्धकौशल्य
व असामान्य कर्तृत्व अंगी असूनही ते दाखवू न शकलेला महान योद्धा म्हणजे बर्बरिक. अहिल्यावती
नामक नागवंशीय राजकुमारीचा हा सुपुत्र अनेक दैवी शक्ती व असामान्य युद्धकौशल्यानं वरदान
प्राप्त योद्धा होता. त्याच्या पित्याप्रमे, म्हणजे घटोत्कचाप्रमाणे मायावी विद्या
व आजोबा भीमाप्रमाणे महापराक्रमी बर्बरिकानं घोर तपश्चर्या करून अग्नीकडून दिव्य धनुष्य
व भगवान शंकराकडून तीन बाण प्राप्त केले होते.
त्यातील प्रत्येक बाण एकदा सुटला की असंख्य योध्यांचा जीव घेऊन बर्बरिकाच्या
भात्यात परत विसावणार होता. बर्बरिकला बर्बरिकाला एखादा समुदाय शत्रू वाटल्यास व त्यावर
बाण सोडल्यास बार्बरीकाच्या नकळत बाण सगळ्यांना संपवू शकणार होता. बार्बरीकाना नं महाभारताच्या
युद्धात भाग घेण्याची तीव्र इच्छा आपल्या आईकडे बोलून दाखवली, तेव्हा अहिल्यावतीनं
त्याच्याकडे वचन मागितलं. खरं तर बर्बरीकाचे तीन दिव्य बाण संपूर्ण युद्धाचा निर्णय
काही क्षणात लावू शकत होते. परंतु, आईला दिलेल्या
वचनाप्रमाणे तो केवळ हरणाऱ्या पक्षाकडे राहूनच युद्ध करणार होता.
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हमने वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक
नारी के बदलते रूप को देखा है । कानून की द्रष्टि से भारतीय नारी को पुरुष की
भाँति जीवन के विविध क्षेत्रों में समान अवसर प्राप्त हुए हैं, परंतु आज भी परिवार
और समाज में नारी की स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है । इसका कारण स्त्री
पुरुष पर अवलंबित है । आम स्त्री पुरुषों के बराबर श्रम करने पर भी उसका श्रम कहीं
दिखाई नहीं देता है । उसे पति के कार्य में पत्नी द्वारा हाथ बँटा दिये जाने की
संज्ञा दी जाती है । कृषकों एवं कुटीर उद्योग चलाने वाले पुरुषों की पत्नियाँ अपने
पति के साथ काम करती हैं । उन्हीं की भाँति रस्सी बँटाना, टोकरियाँ बुनना आदि काम
करती हैं । “आँकड़ों में पता चलता है कि विश्व की कुल जनसंख्या का आधा भाग होते
हुए भी महिलाएँ कुल कार्य घंटों का दो-तिहाई भाग स्वयं करती हैं । बदले में उन्हें
आय का मात्र दसवाँ हिस्सा भुगतान के रूप में दिया जाता है ।” इसके अतिरिक्त
स्त्रियों के ग्रार्हस्थिक कार्यों को उत्पादक नहीं माना जाता । इसलिए सुबह से रात
तक चूल्हे-चौके की परिधि में घूमना स्त्री का सारा श्रम अनुत्पादक बनकर रह जाता है
। “परिणामतः जनगणना के समय उनकी गणना दूसरों के आश्रय में रहकर अपना पेट पालने
वाले बेकारों और आश्रितों के वर्ग में की जाती है ।”
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मानव समाज मानवीय सम्बन्धों व सह-सम्बन्धों का एक अनोखा
ताना-बाना
है । हमारे समाज में साधु, शैतान, राजा, रंक, कूटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ, अपराधी, धर्मावतार आदि सभी साथ में रहते हैं । यहाँ पर निरक्षरता, अज्ञानता, कुसंस्कार, साम्प्रदायिक
दंगे-फसाद, जातिवाद एवं
प्रजातिवाद के घोर अन्धकार से लेकर शिक्षा-दीक्षा व ज्ञान का जगमगाता हुआ प्रकाश भी है । इन सभी को
लेकर ही सामाजिक घटनाओं की प्रकृति का निर्धारण होता है । ये सामाजिक घटनाएँ ही
वैज्ञानिकों के अनुसंधान एवं सर्वेक्षण होता है । ये सामाजिक घटनाओं का अर्थ एवं
वास्तविक प्रकृतिक को समझना अति आवश्यक है ।